माँ स्कन्दमाता | Maa Skandmata
माता पार्वती ने जब भगवान स्कंध (भगवान कार्तिकेय) को जन्म दिया उसके बाद से माता पार्वती को स्कंदमाता नाम से जाना जाने लगा ।
जो भी भक्त माँ स्कन्दमाता को पूजा कर्ता है उन्हें भगवान कार्तिकेय का भी आशिर्वाद मिलता हैं क्युकि माता पार्वती के इस स्वरूप में माँ स्कन्दमाता के गोद में भगवान कार्तिकेय विराजमान है, यह फल माता पार्वती के केवल इसी स्वरूप के साथ मिलता हैं।
माँ स्कन्दमाता क्रोधित सिंह पर सवार है और उनकी गोद में भगवान कार्तिकेय बाल स्वरूप में विराजमान हैं। भगवान कार्तिकेय स्कंध नाम के साथ-साथ मुरुगन नाम से भी जाने जाते हैं, भगवान कार्तिकेय श्री गणेश के ज्येष्ठ भाई भी हैं।
माँ के इस स्वरूप को चार हाथों के साथ दर्शाया गया है, माँ के दो हाथों में कमल के फूल है एक हाथ में भगवान कार्तिकेय और एक हाथ आशिर्वाद मुद्रा मे हैं। माँ का एक नाम पद्मासना भी है।
माँ स्कन्दमाता जी की आरती |
Maa Skandmata Aarti
जय तेरी हो स्कन्द माता।
पांचवां नाम तुम्हारा आता॥
सबके मन की जानन हारी।
जग जननी सबकी महतारी॥
तेरी जोत जलाता रहूं मैं।
हरदम तुझे ध्याता रहूं मै॥
कई नामों से तुझे पुकारा।
मुझे एक है तेरा सहारा॥
कही पहाड़ों पर है डेरा।
कई शहरों में तेरा बसेरा॥
हर मन्दिर में तेरे नजारे।
गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥
भक्ति अपनी मुझे दिला दो।
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥
इन्द्र आदि देवता मिल सारे।
करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए।
तू ही खण्ड हाथ उठाए॥
दासों को सदा बचाने आयी।
भक्त की आस पुजाने आयी॥
॥ इति माँ स्कन्दमाता जी की आरती ॥
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नवरात्रि पूजा
नवरात्रि के पांचवें दिन देवी स्कंदमाता की पूजा की जाती है ।
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शासी ग्रह
ऐसा माना जाता है कि बुद्ध ग्रह देवी स्कंदमाता द्वारा शासित है।
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पसंदीदा फूल
लाल रंग के फूल माता को अति प्रिय है ।
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मंत्र
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
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प्राथना
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
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स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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ध्यान
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्विनीम्॥
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पञ्चम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
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स्तोत्र
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरम् पारपारगहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रदीप्ति भास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चितां सनत्कुमार संस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलाद्भुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तितां विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालङ्कार भूषिताम् मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेदमार भूषणाम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्र वैरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनीं सुवर्णकल्पशाखिनीम्
तमोऽन्धकारयामिनीं शिवस्वभावकामिनीम्।
सहस्रसूर्यराजिकां धनज्जयोग्रकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभृडवृन्दमज्जुलाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरम् सतीम्॥
स्वकर्मकारणे गतिं हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनः पुनर्जगद्धितां नमाम्यहम् सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवी पाहिमाम्॥
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कवच
ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयम् पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री ह्रीं हुं ऐं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वाङ्ग में सदा पातु स्कन्दमाता पुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृते हुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्ने च वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासिताङ्गी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥
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