माँ सिद्धिदात्री | Maa Siddhidatri
माँ सिद्धिदात्री शक्ति की सर्वोच्च देवी है, आदि-पराशक्ति भगवान शिव के बाएं भाग से प्रकट होने के कारण माँ का नाम सिद्धिदात्री प़डा और इसी कारण भगवान शिव अर्ध-नारीश्वर नाम से भी जाने जाते है। माँ अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती है, उन्हीं की कृपा से भगवान शिव को भी सिद्धियां प्राप्त हुई है।
माँ की पूजा केवल मनुष्य ही नहीं देव, गंधर्व, सुर, असुर, यक्ष और सिद्ध सभी करते है। माँ सिद्धिदात्री कमल पर सवार है और सिंह पर सवार होती है। माँ को चार हाथों से दर्शाया गया है, उनके एक दाहिने हाथ में गदा, दूसरे दाहिने हाथ में चक्र, एक बाएं हाथ में कमल का फूल और दूसरे बाएं हाथ में शंख है।
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माँ सिद्धिदात्री जी की आरती |
Maa Siddhidatri Aarti
॥ आरती माँ सिद्धिदात्री जी की ॥
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता।
तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥
॥ इति माँ सिद्धिदात्री जी की आरती ॥
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नवरात्रि पूजा
नवरात्रि के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है ।
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शासी ग्रह
ऐसा माना जाता है कि केतु ग्रह माँ सिद्धिदात्री द्वारा शासित है।
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पसंदीदा फूल
चपमा के फूल माता को अति प्रिय है ।
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मंत्र
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
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प्राथना
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
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स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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ध्यान
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
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स्तोत्र
कञ्चनाभा शङ्खचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
नलिस्थिताम् नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोऽस्तुते॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता, विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनीं।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
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कवच
ॐकारः पातु शीर्षो माँ, ऐं बीजम् माँ हृदयो।
हीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजम् पातु क्लीं बीजम् माँ नेत्रम् घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै माँ सर्ववदनो॥
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