माँं शैलपुत्री | Maa Shailputri
माता सती के रूप में आत्मदाह के बाद, माता पार्वती ने भगवान हिमालय के परिवार में उनकी बेटी के रूप में जन्म लिया। संस्कृत में शैल का अर्थ पर्वत होता है, जिसके कारण माँ को पर्वत की पुत्री शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है, उन्हें हेमावती और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है, माता की सवारी बैल है और इस कारण उन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है।
माँं शैलपुत्री जी की आरती |
Maa Shailputri Aarti
शैलपुत्री माँ बैल असवार। करें देवता जय जय कार॥
शिव-शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने न जानी॥
पार्वती तू उमा कहलावें। जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें॥
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू। दया करें धनवान करें तू॥
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने तेरी उतारी॥
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो॥
घी का सुन्दर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के॥
श्रद्धा भाव से मन्त्र जपायें। प्रेम सहित फिर शीश झुकायें॥
जय गिरराज किशोरी अम्बे। शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे॥
मनोकामना पूर्ण कर दो। चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो॥
॥ इति माँं शैलपुत्री जी की आरती॥
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नवरात्रि पूजा
सभी नौ रूपों में अपने महत्व के कारण ही नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
15 अक्टूबर 2023, को इस वर्ष का प्रथम नवरात्रि उत्सव मनाया जाएगा ।
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माँ द्वारा शासित ग्रह
ऐसा माना जाता है, चंद्रमा सभी भाग्य का प्रदाता और माता शैलपुत्री द्वारा शासित है, चंद्रमा के किसी भी बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए माता के इस रूप की पूजा की जाती है।
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माँ का स्वरूप विवरण
माता शैलपुत्री को दो हाथों से दर्शाया गया है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है, और उनकी सवारी बैल है ।
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पसंदीदा फूल
चमेली का फूल माता को अति प्रिय है ।
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बीज मंत्र
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
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प्राथना
वन्दे वांच्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढं शूलधरं शैलपुत्रीं यशस्विनीम्
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स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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ध्यान
वन्दे वांच्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढं शूलधरं शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
पुनेन्दु निभं गौरी मूलाधार स्थितं प्रथमा दुर्गा त्रिनेत्रम्।
पाटम्बरा परिधानं रत्नकीरीता नामालंकार भुषिता॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवधरं कांता कपोलं तुगम कुचम।
कामनीयम लावण्यम स्नेहुखि क्षीणामध्यम नितंबनिम्॥
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स्तोत्र
प्रथमा दुर्गा त्वमहि भवसागरः तरणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
त्रिलोजानानि त्वमहि परमानन्द प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वमहि महामोह विनाशिनीम्।
मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
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कवच
ओंकारः में शिराः पातु मूलाधार निवासिनी।
हिमकरः पातु ललाते बीजरूपा माहेश्वरी ।
श्रीमकरा पातु वदने लावण्य माहेश्वरी।
हुंकार पातु हृदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।
फटकरा पातु सर्वांगे सर्व सिद्धि फलप्रदा
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