माँ महागौरी | Maa Mahagauri
नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी को पूजा जाता है, पौराणिक कथाओं के अनुसार माँ शैलपुत्री अत्यंत ही सुंदर थी और उन्हें गोरे रंग का आशीर्वाद प्राप्त था, अत्याधिक गोरे रंग होने के कारण ही उन्हें उनका नाम महागौरी प़डा।
इसी गोरे रंग के कारण माँ की तुलना शंख, चंद्रमा से की जाती है, वह केवल सफेद वस्त्र धारण करती है जिससे उन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा जाता है।
माँ महागौरी को चार हाथों से दर्शाया गया है। वह एक दाहिने हाथ में त्रिशूल रखती हैं और दूसरे दाहिने हाथ को अभय मुद्रा में रखती हैं, वही एक बाएं हाथ में डमरू धारण करती हैं और दूसरे बाएं हाथ को वर मुद्रा में रखती हैं, उनकी सवारी बैल है इसी कारण माँ का एक नाम वृषारूढ़ा भी है।
माँ महागौरी जी की आरती |
Maa Mahagauri Aarti
॥ आरती देवी महागौरी जी की ॥
जय महागौरी जगत की माया।
जय उमा भवानी जय महामाया॥
हरिद्वार कनखल के पासा।
महागौरी तेरा वहा निवास॥
चन्द्रकली और ममता अम्बे।
जय शक्ति जय जय माँ जगदम्बे॥
भीमा देवी विमला माता।
कौशिक देवी जग विख्यता॥
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा॥
सती (सत) हवन कुंड में था जलाया।
उसी धुएं ने रूप काली बनाया॥
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया॥
तभी माँ ने महागौरी नाम पाया।
शरण आनेवाले का संकट मिटाया॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता।
माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।
महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो॥
॥ इति माँ महागौरी जी की आरती ॥
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नवरात्रि पूजा
नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा करी जाती है ।
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शासी ग्रह
ऐसा माना जाता है कि राहू ग्रह माँ महागौरी द्वारा शासित है।
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पसंदीदा फूल
रात की रानी और मोगरा फूल माता को अति प्रिय है ।
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मंत्र
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
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प्राथना
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
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स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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ध्यान
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा महागौरी यशस्विनीम्॥
पूर्णन्दु निभाम् गौरी सोमचक्रस्थिताम् अष्टमम् महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीयां लावण्यां मृणालां चन्दन गन्धलिप्ताम्॥
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स्तोत्र
सर्वसङ्कट हन्त्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमङ्गल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददम् चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
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कवच
ॐकारः पातु शीर्षो माँ, हीं बीजम् माँ, हृदयो।
क्लीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटम् कर्णो हुं बीजम् पातु महागौरी माँ नेत्रम् घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा माँ सर्ववदनो॥
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