माँ कुष्मांडा । Maa Kushmanda
सिद्धिदात्री स्वरूप के बाद माता पार्वती सूर्य के केंद्र में विराजमान हो गई जिससे उन्होंने ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करी। माँ का यह स्वरूप सूर्य के समान ऊर्जावान और दैदीप्यमान है और उनमें सूर्य के अंदर विराजमान होने की शक्ति और क्षमता है, माँ ने ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करी और इसी कारण माँ का नाम कुष्मांडा पड़ा।
माँ के आठ हाथ है और इसी कारण उनको अष्टभुजा भी कहा जाता है माँ के एक हाथ मे जप माला दर्शाई गई है, और ऐसा माना जाता है उस जप माला में सारी सिद्धियां और निधियां प्रदान करने की शक्ति है। माँ को सफेद कद्दू की बाली भी पसंद है जिसे कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है। ब्रह्माण्ड और कूष्माण्डा से सम्बंधित होने के कारण वह देवी कूष्माण्डा के नाम से प्रसिद्ध हैं।
Table of Contents
Toggle
माँ कुष्मांडा जी की आरती |
Maa Kushmanda Aarti
कूष्माण्डा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिङ्गला ज्वालामुखी निराली।
शाकम्बरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे।
सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
॥ इति माँ कुष्मांडा जी की आरती ॥
****************
नवरात्रि पूजा
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती है ।
****************
शासी ग्रह
ऐसा मन जाता है माँ सूर्य को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती है इसी लिए भगवान सूर्य माँ कुष्मांडा द्वारा शासित है ।
****************
पसंदीदा फूल
लाल रंग के फूल माता को अति प्रिय है ।
****************
मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
****************
प्राथना
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
****************
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
****************
ध्यान
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
****************
स्तोत्र
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
****************
कवच
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्विदिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजम् सर्वदावतु॥
****************
माँ कुष्मांडा । Maa Kushmanda