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माँ कात्यायनी | Maa Katyayani

माँ कात्यायनी | Maa Katyayani

माँ कात्यायनी | Maa Katyayani

माँ कात्यायनी | Maa Katyayani

 

ग्रंथो के अनुसार माता पार्वती ने ऋषि कात्य के घर जन्म लिया इसी कारण माँ का नाम कात्यायनी पड़ा। राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए माता पार्वती ने ये रूप लिया धारण करा।
माँ कात्यायनी का इस स्वरूप को योद्धा के रूप में जाना जाता है, माँ का ये स्वरूप सबसे उग्र है । इस रूप में माँ सिंह पर सवार हैं, माँ अपने दाहिने हाथों को अभय और वर मुद्रा रखती है और बाएँ हाथों में कमल का फूल और तलवार पकड़ती हैं।

 

 

माँ कात्यायनी जी की आरती |

Maa Katyayani Aarti

 

जय जय अम्बे जय कात्यायनी।
जय जग माता जग की महारानी॥

बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहावर दाती नाम पुकारा॥

कई नाम है कई धाम है।
यह स्थान भी तो सुखधाम है॥

हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी।
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥

हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मन्दिर में भगत है कहते॥

कत्यानी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की॥

झूठे मोह से छुडाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली॥

बृहस्पतिवार को पूजा करिए।
ध्यान कात्यानी का धरिये॥

हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी॥

जो भी माँ को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥

॥ इति माँ कात्यायनी जी की आरती ॥

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नवरात्रि पूजा

नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है ।

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 शासी ग्रह

ऐसा माना जाता है कि बृहस्पति ग्रह देवी कात्यायनी द्वारा शासित है।

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पसंदीदा फूल

लाल रंग के फूल लाल विशेषकर गुलाब के फूल माता को अति प्रिय है ।

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मंत्र

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

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प्राथना

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

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स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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ध्यान

वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥

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स्तोत्र

कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥

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कवच

कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥

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माँ कात्यायनी | Maa Katyayani
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