दुर्गा पूजा | Durga Puja
दुर्गा पूजा त्योहार माँ दुर्गों को समर्पित है, यह त्योहार वर्ष मे एक बार शारदीय नवरात्रों के समय मनाया जाता है, जिन्हे आश्विन नवरात्रि नाम से भी जाना जाता है। यह नवरात्रि उत्सव पितृ पक्ष की अमावस्या के पश्चात आरंभ होता है और नवरात्रि के छठे दिन से मनाई जाती है जो की दसवे दिन जिसे विजयदशमी या दश्हेरा नाम से भी जाना जाता है।
वैसे तो दुर्गा पूजा हिन्दू त्योहार है परंतु मुख्यत ये त्योहार भारत के कुछ राज्यों मे मनाया जाता है, जैसे की पश्चिम बंगाल, ओडिसा, असम, मणिपुर, और त्रिपुरा में बहोत ही धूम धाम से मनाया जाता है, साथ ही दुर्गा पूजा का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है और इसे दुर्गोत्सव और शारदोत्सव के नाम से भी जाना जाता है।
दुर्गा पूजा और नवरात्रि दोनों ही पर्व एक समय पे मनाए जाते है, दोनों ही उत्सव माँ के विभिन स्वरूपों को समर्पित है परंतु दोनों मे की जाने वाली पूजा विधि और अनुष्ठान एक दूसरे से काफी भिन्न होते है। भारत के उतरी राज्यों में मुख्यत नवरात्रि उत्सव मान्य जाता है वही पूर्वी राज्य जैसे की पश्चिम बंगाल, असम, ओडिसा में दुर्गा पूजा उत्सव आती धूम धाम से माने जाता है।
पूजा के दौरान बहोत सारे अनुष्ठान किए जाते है, जैसे की चण्डी पाठ (दुर्गा सप्तशती), पूजा करना,संधि पूजा, धुनुची नृत्य, चण्डी यज्ञ, स्वरूप विसर्जन, सिन्दूर उत्सव मनाए जाते है।
दुर्गा पूजा का महत्व
पौराणिक कथाओ के अनुसार प्रभु श्री राम ने युद्ध मे जाने से पहले चण्डी होम ( चण्डी यज्ञ ) करके माँ दुर्गा का आशिवाद प्राप्त करा था। इस समय की जाने वाली पूजा को अकाल बोधन अर्थात असामयिक आह्वान कहा जाता है। माँ दुर्गा ने राक्षक महिषासुर का वध कर उसपे विजय प्राप्त की इसी संधरभ मे यह त्योहार मनाया जाता है, दुर्गा पूजा का यह त्योहार बुरायी पर अछाई की वजय के रूप मे माने जाता है, इसी लिए प्रभु श्री राम मे रावण का वध करने से पहला माँ दुर्गा काा आशीर्वाद प्राप्त करा।
दुर्गा पूजा का फल
माँ दुर्गा, अनुष्ठान की अधिष्ठात्री देवी है। माँ दुर्गा भगवान शिव की अर्द्धांगिनी है इसीलिए भगवान शिव पति स्वरूप मे इस पूजा मे शामिल होते है।
ऐसा माना जाता है, माँ दुर्गा और भगवान शिव के साथ उनके पुत्र भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती भी आशीर्वाद प्रदान करने आते है, पूजा करने के फल स्वरूप ना सिर्फ माँ दुर्गा का आशिवाद प्राप्त होता है बल्कि साथ मे भगवान शिव, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती इन सब का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिस प्रकार भगवान शिव को माँ दुर्गा के पति स्वरूप मे पूजा जाता है उसी प्रकार भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती इस चारों को माँ की संतानों के रूप में पूजा जाता है।
दुर्गा पूजा मे मनाए जाने वाले त्योहार
दुर्गा पूजा अश्विनी माह के छठे दिन ( अकाल बोधन ) से मनाई जाती है जो की दसवे दिन ( विजयदशमी ) तक मनाया जाता है। अकाल बोधन के दिन माँ दुर्गा को अमंत्रित किया जाता है और समापन विजयदशमी के दिन अनुष्ठान के साथ विश्राम किया जाता है।
- प्रथम दिवस – अकाल बोधन (नवरात्रि का छठा दिन)
- द्वितीय दिवस – नवपत्रिक पूजन, (नवरात्रि का सातवाँ दिन)
- तृतीय दिवस – दुर्गा अष्टमी, (नवरात्रि का आठवाँ दिन)
- चतुर्थ दिवस – माह नवमी, (नवरात्रि का नौवाँ दिन)
- पंचम दिवस – विजयदशमी, दुर्गा विसर्जन, सिन्दूर उत्सव। (नवरात्रि का दसवाँ दिन)
दुर्गा पूजा के मुख्य अनुष्ठान
दुर्गा पूजा के समय किए जाने वाले अनुष्ठान इस प्रकार है:
- चण्डी पाठ – दुर्गा सप्तशती का पाठ करना या सुनना,
- माँ दुर्गा के भव्य स्वरूप के दर्शन के लिए पंडाल सजाना,
- माँ दुर्गों को हर दिन प्रातः काल पुष्पांजलि अर्पित करना,
- सप्तमी से नवमी तक पूजा करना,
- माँ दुर्गा के समक्ष धुनुची नृत्य करना,
- महा नवमी पे चण्डी यज्ञ करना,
- संधि पूजा करना, इसमे 108 दीपक जलाए जाते है,
- विजयदशमी के दिन माँ की प्रतिमा का विसर्जन होता है,
- सिन्दूर उत्सव के दौरान सिंदूर के साथ खेला जाता है ।