माँ ब्रह्मचारिणी | Maa Brahmacharini
कुष्मांडा स्वरूप के बाद माता पार्वती ने दक्ष प्रजापति के घर उनकी पुत्री सती के रूप मे जन्म लिया । माँ इस स्वरूप में महान सती थी और माँ के अविवाहित रूप को देवी ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा जाता है। माता सती ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की, इसी कठोर तपस्या के कारण माता सती का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा ।
ऐसा कहा जाता है भगवान शिव को अपने पति स्वरूप मे पाने के लिए माता सती ने हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या करी, तपस्या के आरंभ में 1000 से अधिक वर्षों तक माता ने फूल,फल और पत्तेदार सब्जियों का सेवन करा ।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर से प्रार्थना करते हुए 3000 वर्षों तक माता ने सिर्फ बेलपत्र ग्रहन करा, तत्पश्चात माता ने बेलपत्र का सेवन करना भी बंद कर दिया और बिना अन्न – जल के अपनी तपस्या में लिन रही । जब माता ने बेलपत्र का सेवन भी बंद करा तब उनका नाम अपर्णा पड़ा ।
इस रूप मे माता को दो हाथों के साथ दर्शाया है, उनके दाहिने हाथ में माला और बाएं हाथ मे कमंडल है और माँ ब्रह्मचारिणी को नंगे पैर चलते हुए दर्शाया गया है तथा उनके दो हाथ हैं और वह दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल रखती हैं।
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माँ ब्रह्मचारिणी जी की आरती |
Maa Brahmacharini Aarti
जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥
ब्रह्म मन्त्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सरल संसारा॥
जय गायत्री वेद की माता।
जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥
कमी कोई रहने ना पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए॥
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने॥
रद्रक्षा की माला ले कर।
जपे जो मन्त्र श्रद्धा दे कर॥
आलस छोड़ करे गुणगाना।
माँ तुम उसको सुख पहुँचाना॥
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम॥
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी॥
॥ इति माँ ब्रह्मचारिणी जी की आरती ॥
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नवरात्रि पूजा
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है ।
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शासी ग्रह
मंगल ग्रह माँ ब्रह्मचारिणी द्वारा शासित हैं।
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पसंदीदा फूल
चमेली (Jasmine) का फूल माता को अति प्रिय है ।
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मंत्र
ॐ देवी ब्रह्मचारिणी नमः॥
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प्राथना
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
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स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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ध्यान
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
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स्तोत्र
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
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कवच
त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
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माँ ब्रह्मचारिणी | Maa Brahmacharini
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