कमल नेत्र स्तोत्रम् | Kamal Netra Stotra in Hindi
कमल नेत्र स्तोत्र श्री कृष्ण को समर्पित स्तुति है। भगवान श्री हरी विष्णु के आठवे अवतार श्री कृष्ण है और विश्व भर मे श्री कृष्ण पूजे जाते है। कमल का अर्थ है ‘कमल’ और नेत्र का अर्थ है ‘आखें’। इस स्तोत्र मे श्री कृष्ण की ‘कमल जैसी आखों’ के स्वरूप का संगीतमय वर्णनन किया है।
ऐसा मन जाता है यदि भक्त पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ कमल नेत्र स्तोत्र का पाठ करे तो श्री कृष्ण की विशेष कृपया और आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके जीवन के सभी दुख दूर हो जाते है।
कमल नेत्र स्तोत्रम्
श्री कमलनेत्र कटि पीताम्बर अधर मुरली गिरधरम्।
मुकुट कुंडल कर लकुटिया, सांवरे राधेवरम्।१।
कुल यमुना धेनु आगे, सकल गोप्यन के मन हरम्।
पीत वस्त्र बरुङ वाहन, चरण सुख नित सरगम्।२।
करत केल कलोल निश दिन, कुन्ज भवन उजागरम्।
अजर अमर अडोल निश्चल, पुरुषोत्तम अपरा परम्।३।
दीनानाथ दयाल गिरधर, कंश हिरणाकुश हरम्।
गल फूल माल विशाल लोचन, अधिक सुंदर केशवम्।४।
वंशीधर वशुदेव छैया, बलि छल्यो श्री वासनम्।
जब डूबत गज राख लीनो, लंक छेघो रावनम्।५।
सप्त डीप नवखण्ड चौदह, भवन कीनो एक पदम्।
द्रोपदी की लाज राखी, कहाँ लौ उपमा करम्।६।
दीनानाथ दयाल पूरण, करुणामय करुणा करम्।
कविदत्त दास विलास निशिदिन, नाम जपत नट नागारम्।७।
प्रथम गुरुजी के चरण बन्दों, यस्य ज्ञान प्रकाशितम्।
आदि विष्णु जुगादि ब्रम्हा, सेविते शिव शंकरम्।८।
श्रीकृष्ण केशव कृष्ण केशव, कृष्ण केशव यदुपतिम।
श्रीराम रघुवर राम रघुवर, राम रघुवर राघवम्।९।
श्रीराम कृष्ण गोविंद माधव, वासुदेव श्री रामनम्।
मच्छ-कच्छ वाराह नरसिंह,पाहि रघुपति पावनम्।१०।
मथुरा में केशव राय विराजै, गोकुल बाल मुकुंद जी।
श्री वृन्दावन में मदन मोहन, गोपीनाथ गोविन्द जी।११।
धन्य मथुरा धन्य गोकुल, जहां श्रीपति अवतरे।
धन्य यमुना नीर निर्मल, ग्वाल बाल सुखावरे।१२।
नवनीत नागर करत निरन्तर, शिव विरंचि मनमोहितम्।
कालिन्दी तट करत क्रीड़ा, बाल अद्भुत सुंदरम्।१३।
ग्वाल बाल सब सखा विराजे, संग राधे भामिनि।
बंशी वट तट निकट यमुना, मुरली की टेर सुहावनी।१४।
भज राघवेश रघुवंश उत्तम, परम् राजकुमार जी।
सीता के पति भक्तन के गति, जगत प्राण आधार जी।१५।
जनक राज पणक राखी, धनुष बाण चढावहिं।
सती सीता नाम जाके, श्री रामचन्द्र पर्णावहीँ।१६।
जन्म मथुरा खेल गोकुल, नन्द हरि नन्दनम्।
बाल लीला पतित पावन, देवकी वसुदेवकम्।१७।
श्रीकृष्ण कलिमल हरण जाके, जो भजै हरि चरण को।
भक्ति अपने देव माधव, भवसागर के वरण को।१८।
जगनन्नाथ जगदीश स्वामी, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्।
द्वारिका के नाथ श्रीपति, केशवं प्रणामाम्यहम्।१९।
श्रीकृष्ण अष्टपद पढ़त निशदिन, विष्णु लोक सगच्छतम्।
गुरु रामानन्द अवतार स्वामी, कविदत्तदास स्माप्तम्।२०।
॥ इति श्री कमल नेत्र स्तोत्रम् ॥
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